Wheat Farming: ये है भारत की सबसे ज्यादा कमाई वाली गेहूं की किस्मे, रिकॉर्डतोड़ पैदावार से है फेमस

Wheat Farming: ये है भारत की सबसे ज्यादा कमाई वाली गेहूं की किस्मे, रिकॉर्डतोड़ पैदावार से है फेमस, भारत की सबसे प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई शुरु हो चुकी है, लेकिन जिन किसानों ने अभी गेहूं की बुवाई शुरु नहीं की है और वे गेहूं की उन्नत किस्म के साथ अच्छी उपज लेना चाहते है तो हम आपको गेहूं की बुवाई और सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली कुछ किस्मों की जानकारी दे रहे है। ये किस्म ऐसी है, जिससे आपके खेत गेहूं की फसल से लहलहा उठेंगे।
ये है सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में (These are the highest yielding advanced varieties)

सीमित सिंचाई व समय से बुवाई के लिए डब्ल्यूएच 1142 किस्म को अपनाया जा सकता है। गेहूं की खेती में किस्मों का चुनाव एक महत्वपूर्ण निर्णय है जो यह निर्धारित करता है कि उपज कितनी होगी। हमेशा नई, रोगरोधी व उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए। सिंचित व समय से बीजाई के लिए डीबीडब्ल्यू 303, डब्ल्यूएच 1270, पीबीडब्ल्यू 723 और सिंचित व देर से बुवाई के लिए डीबीडब्ल्यू 173, डीबीडब्ल्यू 71, पीबीडब्ल्यू 771, डब्ल्यूएच 1124, डीबीडब्ल्यू 90 व एचडी 3059 की बुवाई कर सकते हैं। जबकि अधिक देरी से बुवाई के लिए एचडी 3298 किस्म की पहचान की गई है।
जानिए इन वैरायटी के गेहूं का बुवाई का समय, बीज दर व उर्वरक की सही मात्रा (Know the sowing time of these varieties of wheat, seed rate and the right amount of fertilizer)

उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र के लिए गेहूं की बुवाई का समय, बीज दर और रासायनिक उर्वरकों की सिफारिश तालिका में दी गई है। गेहूं की बुवाई करने से 15-20 दिन पहले पहले खेत तैयार करते समय 4-6 टन/एकड़ की दर से गोबर की खाद का प्रयोग करने से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
जानिए बुवाई की इस नयी तकनीक के बारे में (Know about this new technology of sowing)

फसल अवशेषों को सतह पर रखने से पौधों के जड़ क्षेत्र में नमी अधिक समय तक संरक्षित रहती है। धान-गेहूं फसल पद्धति में जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं की बुवाई एक कारगर और लाभदायक तकनीक है। इस तकनीक से धान की कटाई के बाद जमीन में संरक्षित नमी का उपयोग करते हुए जीरो टिल ड्रिल मशीन से गेहूं की बीजाई बिना जुताई के ही की जाती है। जहां पर धान की कटाई देरी से होती है वहां पर यह मशीन काफी कारगर सिद्ध हो रही है। जल भराव वाले क्षेत्रों में भी इस मशीन की काफी उपयोगिता है। यह धान के फसल अवशेष प्रबंधन की सबसे प्रभावी और दक्ष विधि है। इस विधि से गेहूं की बुवाई करने से पारंपरिक बुवाई की तुलना में बराबर या अधिक उपज मिलती है और फसल गिरती नही है। तापमान में वृद्धि का प्रतिकूल प्रभाव उपज पर नही पड़ता है और खरपतवार भी कम होते हैं।
उच्च उर्वरता की दशा में पोषण प्रबंधन (Nutrition Management in High Fertility)

अधिक बढ़वार के कारण गेहूँ की फसल को गिरने से बचाया जा सके। हाल के वर्षों में गेहूं की नई किस्मों को उच्च उर्वरता की दशा में परीक्षण किए गए हैं, जिसमें गोबर की खाद की मात्रा 10-15 टन/हैक्टेयर और रसायनिक उर्वरकों की मात्रा को डेढ़ गुणा बढ़ाकर तथा बीजाई के समय को 25 अक्टूबर से 31 अक्टूबर के बीच रखकर परीक्षण किए गए, जिनके परिणाम काफी उत्साहवर्धक रहे हैं। इन परीक्षणों में गेहूं की बुजाई के 40 व 75 दिन बाद दो बार वृद्धि अवरोधक क्लोरमिक्वाट (0.2) $ प्रोपीकोनॉल (0.1) का छिड़काव भी किया गया, ताकि वानस्पतिक वृद्धि को रोका जा सके और ज्यादा फुटाव को बढ़ावा मिल सके।
गेहूं की खेती में सिंचाई प्रबंधन जरूरी (Irrigation management is essential in wheat cultivation)
किसान भाईयों को इन योजनाओं का लाभ लेकर सिंचाई जल प्रबंधन के राष्ट्रीय दायित्व का भी निर्वहन करना चाहिए।अधिक उपज के लिए गेहूं की फसल को पांच-छह सिंचाई की जरूरत होती है। पानी की उपलब्धता, मिट्टी के प्रकार और पौधों की आवश्यकता के हिसाब से सिंचाई करनी चाहिए। गेहूं की फसल के जीवन चक्र में तीन अवस्थाएं जैसे चंदेरी जड़े निकलना (21 दिन), पहली गांठ बनना (65 दिन) और दाना बनना (85 दिन) ऐसी हैं, जिन पर सिंचाई करना अतिआवश्यक है। यदि सिचाई के लिए जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो पहली सिंचाई 21 दिन पर इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर अन्य पांच सिंचाई करें। सिंचाई की इन तकनीकों पर केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी के रूप में अनुदान भी दिया जा रहा है।